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जब अशोक के समय में संस्कृत की शब्दावली नहीं है, तब गौतम बुद्ध के समय में संस्कृत की शब्दावली की कल्पना बेकार की बात है।


http://nationaldastak.com/story/view/opinion--about-vedas-an-sanshkirat-language-



‘भारतीय समाज में यह एक उल्‍लेखनीय दौर रहा है कि ब्राहमणें ने महत्‍वपूर्ण  स्‍थिति बना ली थी, परंतु अपने विषय में उसने जो साहित्‍य रचा निस्‍संदेह वह बहुत ही अवांछनीय है। कोई भी यह कल्‍पना नहीं कर सकता कि इतिहास के उस दौर में आदिम समाज में ही कोई ऐसा साहित्‍य रचा जा सकता हो जो इतना पांडित्‍यपूर्ण हो और कालातित हो। रचनाएं इतनी अनर्गल हैं कि जिनका कोई जोड़ नहीं। उसमें उपहासास्‍पद विचार भरे पड़े हैं जिनमें सशक्‍त भाषा और सुविचारित तर्क हैं और विचित्र परंपराएं हैं। ये विकृत रचनाओं का अंशमात्र है जैसे पीतल या रांग में रत्‍न जड़ दिए गए हों। यह क्षूद्र साहित्‍य सामान्‍यत: अरूचिकर शब्‍दाडंबर है जिसमें पोंगापंथी, अहंकार और पूरा पांडित्‍य भरा पड़ा है। इतिहासकारों के लिए बहुत महत्‍वपूर्ण बात है कि वे यह पता लगाएं कि किसी राष्‍ट्र का स्‍वस्‍थ विकास ऐसी पोंगापंथी और अंधविश्‍वासों के रहते कितनी तीव्रता से हो सकता है। हमारे लिए यह जानना महत्‍वपूर्ण है कि आरंभिक काल में क्‍या कोई देश ऐसी महामारी से ग्रस्‍त हो सकता है। ऐसी रचनाओं का उसी प्रकार अध्‍ययन किया जाना चाहिए जैसे कोई चिकित्‍सक मंदबुद्धि और मनोरोगियों की दशा का परीक्षण करता है।’’ –प्रो. मैक्‍समूलर, प्राचीन संस्‍कृति साहित्‍य, पृष्‍ठ संख्‍या 200 

प्रत्येक प्राचीन सभ्यता की अपनी लिपि है। सुमेरी सभ्यता की कीलाक्षर लिपि, साइप्रस सभ्यता की लाइनियर लिपि, फोनीशी सभ्यता की फोनीशियन लिपि से लेकर मिस्र की हीरोग्लाइफिक लिपि और बौद्ध सभ्यता की ब्राह्मी लिपि तक। मगर भारत की प्राचीन वैदिक सभ्यता की कोई लिपि नहीं है। यह इतिहासकारों को हैरत में डाल देनेवाली घटना है!

आप जो कह रहे हैं कि सृष्टि के आरंभ में ही वेदों की रचना हो गई थी तो यह सिर्फ हवाबाजी है। असंभव ! वेद आदिम सभ्यता की नहीं, बल्कि एक संगुंफित, जटिल और पेचीदा सभ्यता की रचना है। वेदों की ध्वनियाँ इतनी संगुंफित, जटिल और पेचीदा हैं कि अप्रशिक्षित जीभ इनका उच्चारण कर ही नहीं सकती है। इनकी जटिलता और पेचीदगी का अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि सिर्फ वेद मंत्रों के शुद्ध उच्चारण के लिए 65 शिक्षाग्रंथों की रचना हुई थी।

ध्वनियों का मानक एवं सटीक उच्चारण की खोज में अप्रशिक्षित जीभ सदियों से भटकी होगी। आदिम सभ्यता के आरंभ से जाने कितने वर्षों तक जीभ की नोक कभी मूर्द्धा , कभी तालु तो कभी दाँत को टटोलती रही है। जीभ का कभी अगला, कभी बिचला तो कभी पिछला हिस्सा ध्वनियों के उच्चार में उठे होंगे। तब जाकर एक लंबे अभ्यास के बाद अप्रशिक्षित जीभ ध्वनियों के उच्चार में अभ्यस्त और प्रशिक्षित हुई होगी।

पुरातात्विक प्रमाणों के आधार पर हम कह सकते हैं कि संस्कृत ईसा के बाद की भाषा है। ईसा से पहले संस्कृत का कोई भी अभिलेख कहीं से नहीं मिलता है। पहली सदी में पहली बार शुंग राजा धनदेव का अयोध्या से छोटा-सा अभिलेख संस्कृत में मिलता है। फिर संस्कृत में लिखा हुआ दूसरा अभिलेख दूसरी सदी का गिरनार से मिलता है। निष्कर्ष कि ईसा से पहले संस्कृत भाषा नहीं थी। जब संस्कृत भाषा नहीं थी, तब संस्कृत साहित्य भी नहीं था। जब संस्कृत साहित्य नहीं था, तब संस्कृत की शब्दावली भी नहीं थी।

आप अशोक के अभिलेख पढ़े होंगे। अशोक के अभिलेख में संस्कृत की शब्दावली नहीं है। जब अशोक के समय में संस्कृत की शब्दावली नहीं है, तब गौतम बुद्ध के समय में संस्कृत की शब्दावली की कल्पना बेकार की बात है। आर्य-सत्य, यशोधरा, सिद्धार्थ, ऋषिपतन जैसी संस्कृत के नियम-कायदों से बनी शब्दावली बाद की है। आर्य-सत्य से अरिय-सच्च की ओर चलना उल्टी यात्रा है। हमें अरिय-सच्च से आर्य-सत्य की ओर चलना होगा।

1965 में शुंगकाल का अंबाला के सुघ से मिट्टी का खिलौना मिला है। एक बालक गोद में तख्ती लिए बाराखड़ी सीख रहा है। तख्ती पर वह अ, आ, इ से लेकर अं और अः तक कुल 12 स्वराक्षर लिख रहा है, जिन्हें उसने 4 बार दुहराया है। बहरहाल, हरियाणा के अंबाला जिले से मिला वह खिलौना दिल्ली के राष्ट्रीय संग्रहालय में है। लिपि वैज्ञानिकों ने इसी आधार पर बताया है कि ब्राह्मी वर्णमाला में शुंगकाल से पहले "ऋ" स्वराक्षर नहीं था, अन्यत्र भी नहीं मिलता है। "ऋ" संस्कृत की विशिष्ट ध्वनि है। जब शुंग काल तक "ऋ" का लेखन अस्तित्व में नहीं था, तब ऋग्वेद, ऋषि, ऋत्विज जैसे ऋ से जुड़ी शब्दावली भी लेखन में नहीं थी।

आप कह सकते हैं कि तब "ऋ" मौखिक रही होगी। मगर आप सिर्फ "ऋ" को मौखिक क्यों और कैसे मानिएगा, जबकि उसके पहले हड़प्पाई लेखन के लगभग 4000 नमूने हैं, अशोक के अनेक अभिलेख उपलब्ध हैं, शेष स्वर-व्यंजन मौजूद हैं। आपको थक-हारकर मानना ही होगा कि संस्कृत शुंगकाल से पहले की नहीं है। वैदिक युग सही मायने में इतिहास का टर्मिनोलाॅजी है ही नहीं! कहीं पढ़े हैं बाइबिल युग, कुरान युग?

ऋग्वेद की प्रमुख नदी सिंधु है। उसमें इसका बार-बार उल्लेख है। ऋग्वेद को पुराना बताने के लिए ही कहा जाता है कि सिंधु से हिंदू का विकास हुआ है। यदि कोई कहे कि हिंदू से सिंधु का विकास हुआ है तो ऋग्वेद बहुत बाद का साबित हो जाएगा। इसीलिए वेदवादी लोग इसका विरोध करते हैं। डॉ. बच्चन सिंह ने तो लिखा है कि आश्चर्य नहीं, आर्यों ने हिंदू को सिंधु कर दिया है। आश्चर्य इसलिए भी नहीं कि सिंधु गुप्तकाल से पहले किसी अभिलेख में मिलता ही नहीं है। अब आप ऋग्वेद का काल तय कर लीजिए।

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Today  divide and rule policy is perfectly implemented in our country. firstly people were divided by bigots(Manuvadis) on lines of caste , then divided people on lines of religion. now bigots are dividing people on lines of Psedo nationalism. Barkha dutt gave a brilliant speech that might pseudo nationalist cannot understand. https://www.youtube.com/watch?v=FFDlUPcvTFc&feature=youtu.be