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Showing posts from August, 2016

जब अशोक के समय में संस्कृत की शब्दावली नहीं है, तब गौतम बुद्ध के समय में संस्कृत की शब्दावली की कल्पना बेकार की बात है।

http://nationaldastak.com/story/view/opinion--about-vedas-an-sanshkirat-language- ‘भारतीय समाज में यह एक उल्‍लेखनीय दौर रहा है कि ब्राहमणें ने महत्‍वपूर्ण  स्‍थिति बना ली थी, परंतु अपने विषय में उसने जो साहित्‍य रचा निस्‍संदेह वह बहुत ही अवांछनीय है। कोई भी यह कल्‍पना नहीं कर सकता कि इतिहास के उस दौर में आदिम समाज में ही कोई ऐसा साहित्‍य रचा जा सकता हो जो इतना पांडित्‍यपूर्ण हो और कालातित हो। रचनाएं इतनी अनर्गल हैं कि जिनका कोई जोड़ नहीं। उसमें उपहासास्‍पद विचार भरे पड़े हैं जिनमें सशक्‍त भाषा और सुविचारित तर्क हैं और विचित्र परंपराएं हैं। ये विकृत रचनाओं का अंशमात्र है जैसे पीतल या रांग में रत्‍न जड़ दिए गए हों। यह क्षूद्र साहित्‍य सामान्‍यत: अरूचिकर शब्‍दाडंबर है जिसमें पोंगापंथी, अहंकार और पूरा पांडित्‍य भरा पड़ा है। इतिहासकारों के लिए बहुत महत्‍वपूर्ण बात है कि वे यह पता लगाएं कि किसी राष्‍ट्र का स्‍वस्‍थ विकास ऐसी पोंगापंथी और अंधविश्‍वासों के रहते कितनी तीव्रता से हो सकता है। हमारे लिए यह जानना महत्‍वपूर्ण है कि आरंभिक काल में क्‍या कोई देश ऐसी महामारी से ग्रस्‍त हो सकता ह